PRESS NOTE–सादर प्रकाशनार्थ
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के “शासन माता” साध्वी प्रमुखा श्री कनक प्रभा जी का दिल्ली में महाप्रयाण
पिछले लगातार 50 वर्षों से साध्वी प्रमुखा पद सुशोभित करने वाले असाधारण साध्वी प्रमुखा जी का संथारे के साथ महाप्रयाण होने पर सम्पूर्ण श्रावक समाज नि:शब्द
महा तपस्वी युग प्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी की आज्ञानुवर्ती “शासन माता” अलंकरण से अलंकृत असाधारण साध्वी प्रमुखा श्री कनक प्रभा जी का आज अध्यात्म साधना केंद्र महरौली दिल्ली में संथारे के साथ महाप्रयाण हो गया।
साध्वी प्रमुखा श्री कनक प्रभा जी तेरापंथ जैन धर्म संघ की यशस्वी साध्वी प्रमुखा की परंपरा में अष्टम साध्वीप्रमुखा थे। उनका जन्म विक्रम संवत १९९८ (सन् 1942) श्रावण कृष्णा १३ को कोलकाता में हुआ। 19 वर्ष की आयु में आचार्य श्री तुलसी के कर कमलों द्वारा केलवा राजस्थान में उनकी दीक्षा संपन्न हुई। उनकी विलक्षण प्रतिभा को देखते हुए मात्र 29 वर्ष की अवस्था में विक्रम संवत २०२८(सन् 1972) में उन्हें आचार्य श्री तुलसी द्वारा साध्वी प्रमुखा पद पर प्रतिष्ठित किया गया।अभी कुछ ही दिनों पूर्व माघ शुक्ला कृष्णा त्रयोदशी को उनके साध्वी प्रमुखा पद के यशस्वी 50 वर्ष पूर्ण होने के अवसर को अमृत महोत्सव के रूप में मनाया गया। अचार्य श्री महाश्रमण जी द्वारा उन्हें “शासन माता” के अलंकरण से अलंकृत किया गया। लगातार 50 वर्ष तक साध्वी प्रमुखा पद सुशोभित करने वाली वह तेरापंथ धर्म संघ की प्रथम साध्वी प्रमुखा थी। इससे पूर्व उन्हें “महाश्रमणी” पद एवं “असाधारण साध्वी प्रमुखा” के अलंकरण से भी अलंकृत किया गया था।
साध्वी प्रमुखा श्री कनक प्रभा जी प्रखर विदुषी साध्वी जी थी। उनकी वक्तृत्व कला अत्यंत प्रभावशाली थी। वे आगम की प्रखर ज्ञाता थी। आध्यात्मिक विषयों का विश्लेषण करने की उनकी कला निराली थी। उनकी लेखन कला एवं काव्य रचना भी बेजोड़ थी। संस्कृत, प्राकृत एवं हिंदी भाषा की प्रखर ज्ञात थी। इतनी विद्वता होने पर भी उनकी सरलता, सहजता और विनयशीलता ने उन्हें साधारण से असाधारण बना दिया।
उन्होंने आचार्य श्री तुलसी, आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी एवं आचार्य श्री महाश्रमण जी जैसे तीन-तीन आचार्यों का विश्वास संपादित किया एवं तीनों ही आचार्यों के शासनकाल में साध्वी प्रमुखा पर भी सुशोभित किया। पिछले कुछ समय से वे असाध्य बीमारी से ग्रस्त थी। उन्हें दर्शन देने के लिए आचार्य श्री महाश्रमण जी ने बीदासर (राज.) से द्रुतगति से बिहार किया एवं आखिरी चरण में तो केवल 4 दिन में लगभग 150 किलोमीटर की पदयात्रा विहार कर वे दिनांक 6 मार्च को दिल्ली पहुंचे थे एवं पहुंचते ही हॉस्पिटल पहुंचकर साध्वी प्रमुखा जी को दर्शन दिए थे।
आज प्रात: 7:27 को उनकी अंतिम इच्छा अनुसार पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी ने उन्हें तिविहार संथारे का संकल्प करवाया एवं प्रातः 8:29 को उन्होंने चोविहार संथारे का संकल्प ग्रहण किया। मात्र 16 मिनट की चौविहार संथारा साधना के पश्चात प्रातः 8:45 पर उन्होंने असार संसार का और नश्वर देह का परित्याग कर महाप्रयाण कर लिया। दिनांक 16 मार्च को शाम 4:00 बजे उनकी पालकी यात्रा प्रारंभ हुई और अध्यात्म साधना केंद्र दिल्ली के नजदीक अनुकंपा भवन में उनके पार्थिव देह के अंतिम संस्कार किए गए। उनका स्वर्गवास होने पर समग्र भारत का तेरापंथ समाज ही नहीं संपूर्ण जैन समाज स्तब्ध और निःशब्द है। उनके महाप्रयाण से समग्र जैन शासन की अपूरणीय क्षति हुई है।
संकलन — अर्जुन मेड़तवाल
उपासक प्रभारी , तेरापंथी सभा, उधना (सूरत)
पूर्व प्रिन्ट मीडिया विभाग प्रमुख
अणुव्रत महासमिति, नई दिल्ली
दिनांक : 16-3-2022
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