सरस्वती स्वरूपा असाधारण साध्वी प्रमुखा श्री कनक प्रभा जी
तेरापंथ धर्म संघ आचार्य केंद्रित धर्म संघ है। यहां आचार्य ही सर्वोपरि होते हैं। विशाल धर्मसंघ की बागडोर एक ही आचार्य के कर कमलों में होती है। इस संघ में हर साधु-साध्वी के लिए, हर श्रावक-श्राविका के लिए आचार्य की आज्ञा शिरोधार्य होती है। इसीलिए तो कहा गया है :
*तेरापंथ की क्या पहचान*
*एक गुरु और एक विधान*
आचार्य पूरे संघ के मार्गदर्शक होते हैं, लेकिन व्यवस्था की दृष्टि से किसी एक साध्वी को आचार्य श्री स्वयं साध्वी प्रमुखा-पद पर नियुक्त करते हैं।
साध्वी-प्रमुखा की गौरवशाली परंपरा में प्रथम साध्वी प्रमुखा का पद सुशोभित किया था साध्वी प्रमुखा श्री सरदारांजी ने। इसी गौरवशाली परंपरा का वर्तमान में निर्वहन कर रहे हैं साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभाजी। आप तेरापंथ धर्म संघ के अष्टम साध्वी प्रमुखाजी हैं।
साध्वी प्रमुखा श्री कनक प्रभा जी *यथा नाम तथा गुण* की उक्ति को सार्थकता प्रदान किए हुए हैं। आप अनेक विशेषताओं के पुंज हैं। आपका सांसारिक नाम था कला। पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी ने विक्रम संवत 2017 में आपको दीक्षित किया और नाम रखा साध्वी कनक प्रभा। विक्रम संवत 2028 में पूज्य गुरुदेव श्री पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी पूरे सातवें संघ की सार संभाल की जिम्मेदारी देते हुए आपको साध्वी प्रमुखा-पद से नवाजा। तब से लेकर अब तक आपने विकास के अनेक शिखरों पर आरोहण किया है। आपके नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में समूचे साध्वी संघ ने अपूर्व विकास किया है। अपने गुरु ने आप पर जो विश्वास किया उस विश्वास पर खरा उतरने का गुरु ने जो नाम रखा उस नाम को सार्थकता प्रदान करने का आपने भरपूर प्रयास किया।
आप अनेक विरल विशेषताओं के पुंज हैं। आपके भीतर जिनशासन के प्रति प्रगाढ़ आस्था है। तेरापंथ धर्म संघ एवं संघपति के प्रति आप का समर्पण बेजोड़ है। आपकी कर्तव्यनिष्ठा, आपकी अनुशासन प्रियता, आपका विनय, आपकी विनम्रता, आपका वात्सल्य सब कुछ बेमिसाल है। आपका समत्व, सरलता, सहजता, और ऋजुता सबके लिए अनुकरणीय है।
तेरापंथ में आचार्य और युवाचार्य के बाद साध्वी प्रमुखा का पद सर्वोच्च पद गिना जाता है। इतने उच्च पद पर आसीन होने के उपरांत आपकी विनम्रता बाल साध्वी सुलभ है। पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी से आप आयु में काफी वरिष्ठ हैं। फिर भी पूज्य आचार्यवर के प्रति आपका जो विनम्रता भाव है वह प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करने वाला है।
आपकी सन्निधि में पहुंचते हैं, आप के दर्शन करते हैं तो एक पवित्र आभामंडल में प्रविष्ट होने की अनुभूति होती है। आपके इर्द-गिर्द तेजस्विता के परमाणुओं का, तेजस्विता की सहस्त्र रश्मियों का विशिष्ट तेजोवलय अनुभूत होता है। आपका व्यक्तित्व अनेक विशिष्टताओं से परिपूर्ण है। आपके व्यक्तित्व के अनेक पहलू हैं। उनमें से दो सशक्त पहलू है आपकी लेखन शैली और आपकी प्रवचन शैली। व्यक्ति के भावों की और चिंतन की अभिव्यक्ति उसके शब्दों से होती है। शब्दों का प्रस्फुटन दो विधाओं से होता है एक विधा है लेखन और दूसरी विधा है वाणी। गौरव इस बात का है कि इन दोनों ही विधाओं में साध्वी प्रमुखा महाश्रमणी श्री कनक प्रभा जी को विशेष अर्हता प्राप्त है। लेखन शैली के भी दो प्रकार हैं : पद्य मय एवं गद्य मय। आप दोनों ही विधाओं में पारंगत हैं। आपकी पद्यमय लेखन शैली पाठक पर विशेष प्रभाव छोड़ने वाली है। आप द्वारा रचित काव्य, मुक्तक आदि अत्यंत बहुत प्रेरक होते हैं। वहीं आप द्वारा रचित गीतिकाओं को सुनते हैं तो मन में विशेष आह्लाद की अनुभूति होती है।
आपकी वाणी में ओज है। आपकी वाणी से आपके विचारों की परिपक्वता सतत प्रस्फुटित होती रहती है। आपके मुखारविंद से प्रस्फुटित प्रत्येक शब्द आपके समृद्ध भाव जगत का परिचय प्रस्तुत करता है। विषय आध्यात्मिक हो या व्यवहारिक, धर्म-नीति का हो या कर्म-नीति का, आप जब जब उस विषय पर अपना विद्वतापूर्ण प्रवचन फरमाते हैं तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। विषय का प्रतिपादन करने की आपकी कला अद्भुत है। बहुत कम लोगों में ऐसी कला पाई जाती है। आप के प्रवचन का प्रत्येक शब्द श्रोता समूह को प्रभावित करने वाला होता है। कौन-सा शब्द कहां पर प्रयुक्त करना चाहिए और कौन-सा शब्द कहां पर प्रयुक्त नहीं करना यह भी एक विवेक होता है। एक कला होती है। और इस विवेक कला में आप निपुण हैं। आपके प्रवचन का प्रत्येक शब्द श्रोता के कानों तक ही नहीं बल्कि उसके मन मस्तिष्क और ह्रदय स्थल तक पहुंचकर अंतर को आनंद से अभिसिंचित कर देता है। उदाहरण मुहावरों और आवश्यक हो वहां लघु कहानियों को उद्धृत करते हुए आप प्रवचन फरमाते हैं तब आपके ज्ञान की गहराई की अनुभूति होती है। आपकी वक्तृत्व शैली और विषय का प्रतिपादन इतना सटीक होता है कि श्रोता के मन में न तो कोई उलझन रहती है न ही कोई प्रश्न अवशेष रहता है। श्रोता Pin drop Silence के साथ आप का प्रवचन सुनते हैं और अपने आप को तरोताजा महसूस करते हैं। जैसे किसी पौधे को जल का सिंचन मिलता है और वह हरा-भरा हो जाता है वैसे ही आपकी वाणी सुनकर मन-मस्तिष्क उर्जा से समृद्ध हो जाता है। आपके प्रवचन के साथ-साथ आप की ज्ञान की गंभीरता और चेहरे की सौम्यता, और अभिजात्य मुस्कान बिखेरती मुखमुद्रा देखकर श्रोता आनंद से सराबोर हो जाते हैं। आपका प्रवचन सुनते-सुनते श्रोता ज्ञान के अगाध सागर में डुबकियां लेने लग जाते हैं। आपकी निर्मल मेधा उत्तुंग हिमालय जैसी है तो आप की मधुर वाणी सरिता शिरोमणि पवित्र गंगा मैया की भांति प्रत्येक को पावनता प्रदान करती है। संक्षिप्त में और एक ही वाक्य में कहूं तो मातृ हृदया साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभाजी कोई साधारण नारी नहीं अपितु साक्षात् माता सरस्वती का अवतार है। आपको पाकर समूचा तेरापंथ धर्मसंघ सौभाग्यशाली है। मैं आपके मनोनयन की 50 वीं वर्षगांठ पर – मनोनयन के अमृत महोत्सव पर आपके श्री चरणो में हार्दिक अभिवंदना करता हूं।
*जुग-जुग जिओ जगवल्लभा*
*सरस्वती स्वरूपा कनकप्रभा*
लेखक — अर्जुन मेड़तवाल
*उपासक प्रभारी , तेरापंथी सभा, उधना (सूरत)*
*पूर्व प्रिन्ट मीडिया विभाग प्रमुख,*
*अणुव्रत महासमिति, नई दिल्ली*
*दिनांक : 26-1-2022*
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