PRESS NOTE–सादर प्रकाशनार्थ

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संथारे की साधना वही कर सकता है जिसमें मृत्यु को भी ललकार ने का साहस होता है। — साध्वी श्री लब्धि श्री जी

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संथारा साधक जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के सुश्रावक श्री बाबुभाई मेहता की स्मृति में तेरापंथ भवन, सिटीलाइट में आयोजित स्मृति सभा में प्रेरक उद्बोधन

 

 

          जन्म और मृत्यु एक श्रृंखला है। जन्म के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद पुन: जन्म। इस श्रृंखला में प्रत्येक जीव अनंत-अनंत समय से भ्रमण कर रहा है। जन्म एक नियति है और मृत्यु भी अवश्यंभावी है। फिर भी मृत्यु का नाम लेते ही हर किसीको डर लगता है। किंतु कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो मृत्यु से भी भयभीत नहीं होते हैं। वे तो सामने चलकर मृत्यु को ललकारते हैं। संथारे की साधना यह मृत्यु को ललकार ने की साधना है। श्री बाबुभाई मेहता ने अभय की आराधना करते हुए अति दुष्कर संथारा साधना संपन्न की है। ऐसा कर के उन्होंने अपनी आत्मा का तो उद्धार किया ही है, साथ-साथ जैन शासन और तेरापंथ धर्मसंघ को भी दीप्तिमान किया है।

        महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री लब्धि श्री जी ने तेरापंथ जैन धर्मसंघ के सुश्रावक वाव निवासी, सूरत प्रवासी श्री बाबुभाई मेहता की 62 दिवसीय संथारा साधना संपन्न होने पर श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा, सूरत द्वारा तेरापंथ भवन, सिटीलाइट में आयोजित स्मृति सभा में उपस्थित श्रावक समुदाय को संबोधित करते हुए उपरोक्त शब्दों का उच्चारण किया।

साध्वी श्री ने आगे कहा — एक दिन का निराहार उपवास करना हो तो आदमी चार दिन पहले ही चिंतित हो जाता है। इस स्थिति में निरंतर 62 दिन तक संपूर्ण निराहार रहते हुए आजीवन अनशन करना, यह मामूली कार्य नहीं है। यह महा दुष्कर कार्य है। और ऐसा कार्य विरले ही कर सकते हैं। श्री बाबुभाई धर्म संघ एवं धर्मगुरु के प्रति प्रगाढ़ आस्था रखते थे। उनकी स्वाध्याय प्रीति, अनुशासन प्रियता, विचारों की पारदर्शिता एवं स्पष्टभाषिता सभी के लिए अनुकरणीय है।

साध्वी श्री हेमलता जी ने कहा – श्री बाबुभाई हमारे संसार पक्षीय मामाजी थे। उन्होंने आत्मोद्धार के लिए कर्म मुक्ति का मार्ग अपनाया और अति दुष्कर तप को पूर्ण किया। उनकी धर्मपत्नी श्रीमती दीवाली बहन एवं सभी परिजनों ने जो आध्यात्मिक सहयोग दिया है वह प्रशंसनीय है।

तेरापंथ भजन मंडली ने भी निरंतर आध्यात्मिक गीत, भजन आदि सुनाते हुए उनका मनोबल बढ़ाने में सहयोग दिया।

साध्वी श्री आराधना श्री जी ने कहा — श्री बाबुभाई स्वाबलंबी थे। अपना काम स्वयं कर लेते थे। उन्होंने वाव पथक तेरापंथ जैन समाज का 25 वर्ष तक नेतृत्व एवं दिशा दर्शन किया। उन्होंने अपने परिवार को भी संस्कारी बनाया। उनके द्वारा सिंचित संस्कार पूरे परिवार में परिलक्षित हो रहे हैं।अब परिवारजनों का दायित्व है कि वे आत्म-विकास के मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ते रहें एवं धर्मसंघ की सेवा में अपने आप को समर्पित करते रहें।

तेरापंथी सभा, सूरत के अध्यक्ष श्री हरीशजी कावड़िया, महिला मंडल अध्यक्षा श्रीमती राखी बैद, तेरापंथी महासभा के पूर्व उपाध्यक्ष श्री चंपकभाई मेहता, तेरापंथी महासभा के वर्तमान कार्यसमिति सदस्य श्री प्रवीणभाई मेहता, प्रवक्ता उपासक “श्रेष्ठ कार्यकर्ता” श्री अर्जुनजी मेड़तवाल, अणुुव्रत समिति ग्रेटर सूरत के अध्यक्ष श्री विजयकांत जी खटेड़ आदि ने एवं परिवार के अनेक सदस्यों ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपनी भावाभिव्यक्ति की। कार्यक्रम का कुशल संचालन तेरापंथी सभा, सूरत के मंत्री श्री नरपत जी कोचर ने किया।

 

*संकलन — अर्जुन मेड़तवाल*

*उपासक प्रभारी , तेरापंथी सभा, उधना (सूरत)*

 

*पूर्व प्रिन्ट मीडिया विभाग प्रमुख,*

*अणुव्रत महासमिति, नई दिल्ली*

 

*दिनांक : 30-12-2021*

 

 

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