महातपस्वी महाश्रमण के ज्योतिचरण से पावन हुआ
अणुव्रत विश्व भारती
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भव्य स्वागत जुलूस में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब
साध्वीप्रमुखाजी सहित अनेक साध्वियों व संतों ने किए आचार्यश्री के किए दर्शन
आचार्यश्री मंत्रीमुनिश्री के स्मृति स्थल के निकट पधारे, किया स्मरण
अपनी आत्मा पर विजय प्राप्त कर लेना परम विजय:
आचार्यश्री महाश्रमण
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी शनिवार को अपनी धवल सेना के साथ बरड़िया विला से प्रस्थित हुए। जयपुर के मालवीय नगर में स्थित अणुव्रत विश्व भारती की ओर गतिमान आचार्यश्री जयपुर नगर किसी भी मार्ग पर पधार रहे थे, श्रद्धालुओं का सैलाब अपने आराध्य के मंगल दर्शन और पावन आशीर्वाद से लाभान्वित हो रहा था। चोखी ढाणी रिसोर्ट के रास्ते सहित अनेक मुख्य मार्गों से जैसे-जैसे आचार्यश्री आगे बढ़ते जा रहे थे, श्रद्धालुओं का काफिला बढ़ता जा रहा रहा था। कुछ किलोमीटर बाद ही वह बढ़ता काफिला एक विशाल और भव्य जुलूस में परिवर्तित हुआ और बुलंद जयघोष के साथ अपने आराध्य के चरणों का अनुगमन करने लगा। लोगों पर आशीषवृष्टि करते आचार्यश्री लगभग दस किलोमीटर का विहार कर मालवीय नगर स्थित अणुव्रत विश्व भारती प्रांगण में पधारे तो मानों गुलाबी नगरी के श्रद्धालुओं का मन गुलाब की भांति खिल उठा।
जयपुर में पहले से स्वास्थ्य लाभ ले रहीं तेरापंथ धर्मसंघ की महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी व अनेक साध्वियों ने आचार्यश्री को वंदन-अभिनन्दन किया। आचार्यश्री भवन के दूसरी ओर अपने दीक्षा प्रदाता मंत्रीमुनिश्री के स्मृति स्थल के निकट पधारे और वहां कुछ क्षण खड़े होकर स्मरण किया। तदुपरान्त आचार्यश्री अपने दो दिवसीय प्रवास हेतु अणुव्रत विश्व भारती के भवन में मंगल प्रवेश किया।
भवन में स्थित ‘महाप्रज्ञ सभागार जनता की उपस्थिति के कारण मानों छोटा नजर आ रहा था। समुपस्थित श्रद्धालुओं को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में जय और पराजय का प्रसंग आता है। युद्ध हो, लोकतांत्रिक प्रणाली में चुनाव में जय और पराजय होता है। आदमी किसी कार्य को पूर्ण कर ले तो जय और न हो पाए तो पराजय मानी जाती है। जंग में दस लाख योद्धाओं को जीत ले तो उसकी जय हो सकती है, परन्तु वह परम जय नहीं हो सकता। एक आत्मा को जो जीत लेता है अर्थात् जो अपनी आत्मा को जीत लेता है, वह आत्म विजेता बन सकता है। आदमी को अपनी आत्मा को जीतने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने प्रसंगवश कहा कि आज हम अणुविभा के प्रांगण में आए हैं। यह स्थान हमारा परिचित है। परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी इसी रास्ते से पधारे थे और जहां से पमर पूज्य गुरुदेव ने प्रवचन फरमाया था, मैंने भी अभी वहीं से मंगलपाठ सुनाया। तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्यजी का जयपुर में दीक्षा और महाप्रयाण हुआ था। परम पूज्य गुरुदेव तुलसी का यहां चतुर्मास हुआ है। हमारे दीक्षा प्रदाता मंत्रीमुनिश्री का विराजना और प्रयाण भी हुआ। वे हमारे धर्मसंघ के वरिष्ठ संत थे। जयपुर राजस्थान की राजधानी भी है। आचार्य महाप्रज्ञजी के महाप्रयाण के बाद पहली बार पधारना हुआ है तो वहां की जनता में धार्मिक-चेतना बनी रहे। अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्प भी जीवन में रहें। आठ चतुर्मास के उपरान्त आज साध्वी धनश्रीजी आदि साध्वियों से भी मिलना हुआ है। सभी खूब अच्छा विकास करती रहें।
प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखाजी की सेवा में लगी साध्वियों ने पूज्यप्रवर की अभिवंदना में गीत का संगान किया। मुनि उदितकुमारजी, मुनि अनंतकुमारजी व मुनि पुलकितकुमारजी ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। साध्वी धनश्रीजी आदि साध्वियों ने गीत के माध्यम से पूज्यचरणों में अपनी प्रणति अर्पित की।
आचार्यश्री के दर्शनार्थ उपस्थित पूर्व डीजी श्री राजीव दासौत ने कहा कि आज बड़े सौभाग्य की बात है जो आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे महान संत के दर्शन करने और प्रवचन सुनने का सुअवसर प्राप्त हुआ। जब भाग्य प्रबल होते हैं तो ऐसे महान संतों के चरणरज पड़ते हैं।
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