
शक्ति आराधना का पर्व है नवरात्र
– मुनि चैतन्य कुमार ‘अमन’
इस संसार में शक्ति का महत्व है। कायर क्लीव कमजोर व्यक्ति दीन-हीन और असहाय होता है। अपने आपको शक्ति सम्पन्न बनाने के लिए हर व्यक्ति प्रयत्न भी करता है। आचार्य महाप्र जी ने एक पुस्तक लिखी है – शक्ति की साधना | उसमें उन्होंने अनेक प्रकार ही शक्तियों के बारे में बताया है जैसे अध्यात्म की शक्ति, संकल्प की शक्ति, चित्त की शक्ति, मन की शक्ति, इच्छा शक्ति, सहिष्णुता की शक्ति, नैतिक शक्ति, ध्यान की शक्ति, मंत्र की शक्ति, व्रत की शक्ति, आहार की शक्ति, ब्रहचर्य की शक्ति, अस्वीकार की शक्ति, मौन की शक्ति | इन सारी शक्तियों को प्राप्त करने के लिए साधना करनी होती है। साधना के बिना शक्ति सम्पन्न बनना मुश्किल होता है। भारतीय परम्परा में शक्ति की साधना के लिए नवरात्र का समय सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। चैत्रीय नवरात्र व आश्विन नवरात्र दोनो नवरात्र के अवसर यंत्र-मंत्र-तंत्र अनुष्ठान कर शक्ति सम्पन्न बनने का प्रयास होता है। हर व्यक्ति में शक्ति होती है किन्तु उस सुप्त शक्ति को जागृत करने की अपेक्षा रहती है। शक्ति की जागृति किसी न किसी अनुभवी व्यक्ति के देख-रेख में करनी चाहिए। मार्ग दर्शक के अभाव में दुर्घटना भी घट सकती है अतः साधना की सिद्धी मार्ग दर्शक के अभाव में नहीं करना चाहिए।
नवरात्र के दिनों में किए गए अनुष्ठान का लक्ष्य स्थिर होना आवश्यक है। अध्यात्म की शक्ति सर्वोपरि होती है। आश्विन माह में किया गया अनुष्ठान सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होता है। ज्योतिष शास्त्र में भी बताया गया है “आश्विनस्य सिते पक्षे दशमा तारको दये, स कालो विजय ज्ञेय सर्व कार्यार्थ सिद्धए” अर्थात् आश्विन शुक्ला दसमी के सांयकाल अगस्त्य नामक तारे के उदय होने तक जो काल रहता है वह सक कामनाओं को सिद्ध करने वाला होता है क्योंकि यह श्रेष्ठ विजय मुहुर्त होता है | संकल्प शक्ति से ही अनुष्ठान को सफल किया जा सकता है। वैसे तो प्रत्येक आत्मा अनंत शक्ति सम्पन्न है, उसमें दोनों प्रकार की शक्तियां है एक ओर दंभ दर्प, क्रोध, अहंकार, वासना से आसुरी शक्तियां है तो दूसरी ओर अभय, अहिंसा, अप्रमाद, निरहंकार, सत्य, सहिष्णुता आदि देवीय शक्तियां भी विद्यमान है। जब व्यक्ति में आसुरी शक्तियां प्रकट होती है तब व्यक्ति उच्छृंखल बन जाता है और देवीय शक्तियों के प्रकट होने पर वह स्वयं तथा दूसरों के हितार्थ का चिंतन करता है। इस कालावधि में सम्पूर्ण रूप से आराधनी होती है तो विशेष रूप से लाभान्वित हो सकता है।
सर्वप्रथम जिस मंत्र की साधना करना हो तो उसके इष्ट के प्रति पूर्णत समर्पण हो, आस्था इतनी गहरी हो कि मंत्र और इष्ट के साथ एकात्मकता हो जाय। सघन आस्था के साथ काल शुद्धि, क्षेत्र शुद्धि, भाव शुद्धि भी अनिवार्य है। जो लोग इन नवरात्र के दिनों में मंत्रानुष्ठान करते हैं, उन्हें सर्वप्रथम सुरक्षा कवच का निर्माण करना होता है, जिससे अनुष्ठान को निर्विघ्न रूप से सम्पन्न किया जा सकें। प्राचीनकाल में जब भी कोई अनुष्ठान करते तो रक्षा कवच बनाकर फिर अनुष्ठान प्रारंभ करते जिससे कोई भी विघ्न बाधा उन्हें विचलित नहीं कर पाती। आज भी साधना को सिद्धी के द्वार तक ले जाया जा सकता है बशर्ते संकल्प सुदृढ हो, सहनशीलता व धेर्य हो, जागरुकता हो, समर्पण हो, आसन की स्थिरता हो, मन निश्चल हो