भीलवाड़ा : चातुर्मास स्थापना अनुष्ठान

चातुर्मास में हो विशेष धर्माराधना – आचार्य महाश्रमण

तेरापंथ अनुशास्ता ने किया मर्यादा पत्र का वाचन

23 जुलाई 2021, शुक्रवार, आदित्य विहार, तेरापंथ नगर, भीलवाड़ा, राजस्थान

आदित्य विहार, तेरापंथ नगर के महाश्रमण सभागार में 200 से अधिक साधु-साध्वियों की पंक्तिबद्ध उपस्थिति पूरे वातावरण को अध्यात्ममय बना रही थी, मौका था चातुर्मास स्थापना का। अहिंसा यात्रा प्रणेता पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य में आज चातुर्मास स्थापना दिवस मनाया गया। मंत्रोच्चार द्वारा आचार्य श्री ने भीलवाड़ा चातुर्मास स्थापना की घोषणा की। इस अवसर पर सभी साधु-साध्वियों ने भी त्रिपदी वंदना एवं मंत्रो का पाठ किया। हल्की बारिश द्वारा मानों प्रकृति भी चातुर्मास शुभारंभ पर अपनी सहभागी बन रही थी। 2021 चातुर्मास के आगाज के साथ ही तेरापंथ नगर भीलवाड़ा इतिहास में स्वर्णांकित हो गया।

चातुर्मास के शुभारंभ के मंगल अवसर पर पूज्यप्रवर आचार्य श्री महाश्रमण ने फरमाया कि व्यक्ति अपने जीवन में लक्ष्य निर्धारित करता है, मंजिल तय करता है। लेकिन निर्धारित मंजिल तक पहुंचने के लिए मार्ग का ज्ञान और मार्गदर्शक जरूरी है। मंजिल उसी को मिलता है जो निरंतर गतिशीलता के साथ चलता है। गति मंद भले हो पर बंद न हो तो मंजिल मिलना मुश्किल नही है। अध्यात्म के संदर्भ में साधना के आलोक में हमारा सबसे ऊंचा लक्ष्य मोक्ष है। उस मोक्ष मार्ग के पथप्रदर्शक अर्हत तींथर्कर भगवान होते है, वर्तमान में आचार्य-गुरु ही सच्चे मार्गदर्शक होते है जिनकी पावन सन्निधि में व्यक्ति आगम वाणी को आत्मसात करते हुए ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप इन चार समुच्चय की आराधना करते हुए मोक्ष का वरण कर सकता है। जिनवाणी द्वारा प्रतिपादित मार्ग ही सत्य है।

आचार्य प्रवर ने आगे फरमाया कि आज की चातुर्मासिक चतुर्दर्शी एक विशिष्ट पहचान लिए हुए है क्योंकि आज से चातुर्मास का प्रारंभ है। चार माह तक एक ही स्थान और क्षेत्र में रहकर संत समुदाय भी रत्नत्रय की आराधना सहजता से कर सकते है। चातुर्मास में जितना हो सके आगम स्वाध्याय और ज्ञान आराधना का क्रम होना चाहिए। सम्यक दर्शन की निर्मलता के लिए कषाय की मंदता, यथार्थ के प्रति श्रद्धा और तत्व बोध ये तीनों चीजे महत्वपूर्ण है। चारित्र की पूंजी के साथ ही संयम की पूंजी को पुष्ट करने के लिए तप जरूरी है। शरीर को भूखा रखना ही तपस्या नहीं होती। स्वाध्याय, ध्यान, सेवा ये भी तप है। चातुर्मास का सुअवसर हमारे सामने है श्रावक समाज जितना हो सके आध्यात्मिक धार्मिक आयोजन में संभागी बनकर अपनी आत्मा का कल्याण करते हुए आध्यात्मिक साधना में योग भूत बने। कोरोना काल में सावधानी, जागरूकता के साथ जितना हो सके अपनी अनुकूलता अनुसार जप-तप, प्रवचन श्रवण आदि धार्मिक अनुष्ठान से भी अपने आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का प्रयास करते रहना चाहिए।

चातुर्मास स्थापना अनुष्ठान एवं हाजरी चातुर्मासिक चतुर्दर्शी के अवसर पर परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण के सान्निध्य में विशेष अनुष्ठान किया गया। सभागार में पंक्तिबद्ध सोशल डिस्टेंसिंग से बैठे साधु-साध्वियों को आचार्य श्री ने विशिष्ट मंत्रो एवं स्तोत्र का उच्चारण करवाया। पिछले पंद्रह महीनों बाद यह प्रथम अवसर था जब साधु-साध्वियां इस प्रकार से गुरुदेव के समक्ष सामूहिक उपस्थित थे। आचार्य प्रवर ने इस दौरान मर्यादा – पत्र “हाजरी” का भी वाचन किया। मर्यादा पत्र में परम पूज्य आचार्य श्री भिक्षु द्वारा लिखित मर्यादाएं है। परंपरा अनुसार हर माह की चतुर्दर्शी को हाजिरी वाचन आचार्य श्री द्वारा किया जाता है, मर्यादाओं की स्मारणा की जाती है।

कार्यक्रम में आचार्य श्री के इंगित से बालमुनि प्रियांशु कुमार, मुनि जयेश कुमार, मुनि ज्योतिर्मय कुमार, मुनि मार्दव कुमार, मुनि खुश कुमार, मुनि अर्हम कुमार, मुनि ऋषि कुमार और मुनि रत्नेश कुमार ने लेख पत्र का वाचन किया।

 

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